Sunday, October 6, 2019

Ye hai mai-kada yahan rind hain yahan sab ka saqi imam hai" by JIGAR MORADABADI

Kapil Jain’s Understanding of the Ghazal " Ye hai mai-kada yahan rind hain yahan sab ka saqi imam hai" by JIGAR MORADABADI

ये है मय-कदा  यहाँ रिंद हैं  यहाँ सब का साक़ी इमाम है
ये हरम नहीं है  ऐ शैख़ जी  यहाँ पारसाई हराम है

जो ज़रा सी पी के बहक गया , उसे मय-कदे से निकाल दो
यहाँ तंग-नज़र का गुज़र नहीं , यहाँ अहल-ए-ज़र्फ़ का काम है

कोई मस्त है, कोई तिश्ना-लब, तो किसी के हाथ में जाम है
मगर इस पे कोई करे भी क्या, ये तो मय-कदे का निज़ाम है

ये जनाब-ए-शैख़ का फ़ल्सफ़ा है अजीब सारे जहान से
जो वहाँ पियो तो हलाल है  जो यहाँ पियो तो हराम है

इसी काएनात में ऐ 'जिगर'  कोई इंक़लाब उठेगा फिर
कि बुलंद हो के भी आदमी अभी ख़्वाहिशों का ग़ुलाम है

                                             ..... जिगर मुरादाबादी

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ये है मय-कदा  यहाँ रिंद हैं  यहाँ सब का साक़ी इमाम है
ये हरम नहीं है  ऐ शैख़ जी  यहाँ पारसाई हराम है

Literally :
This is a tavern, everyone is here to enjoy a drink, here everyone is served without discrimination by the Server, this is no holy periphery therefore self restriction is forbidden here, Enjoy limitless

Crux :
This is life where everyone can express their opinions feelings without any inhabitant without any fear of any backlash, here everyone has the equal opportunity & service by the almighty God,
Here the talk of conservatism is not allowed.

Note :
In Urdu poetry, the a religious place is the symbol of orthodox, conservative values & A Bar is symbolizes as a liberal place where one can express without any social religious beliefs or influence.

मय-कदा : Bar, Pub, Tavern
रिंद : Drinker
साकी : one who serves wine, a sweetheart
इमाम : leader/ chief/ spiritual head
हरम : काबा , Sanctuary, the sacred territory of Mecca
शैख़ : saint/ preacher/ a cast of the muslim
पारसाई : holiness, chastity, self-restraint
हराम : unlawful act, forbidden, prohibited, unlawful

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जो ज़रा सी पी के बहक गया , उसे मय-कदे से निकाल दो
यहाँ तंग-नज़र का गुज़र नहीं , यहाँ अहल-ए-ज़र्फ़ का काम है

Literally :
Who so ever is out with the small quantity of drink, throw him out of the bar, here low stemina has no ground, here people with perseverance can hold the ground.

Crux :
The metaphor Bar or Pub represents the life, where getting irritated with small difficulties has no place, here people with low tolerance has no existence, here survival is dependent on the fitness level. ( who can fight & win the continuous challenges)

तंग-नज़र : narrow mind
अहल-ए-ज़र्फ़ : magnanimous, benevolence, bountiful
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कोई मस्त है, कोई तिश्ना-लब, तो किसी के हाथ में जाम है
मगर इस पे कोई करे भी क्या, ये तो मय-कदे का निज़ाम है

Literally :
Some are intoxicated , Some are still parched to have something, some are holding the drinks,
But what anyone can do in this, the system in the Pub is like this.

Crux :
The metaphor represents society in which we live,
Some having overdosed resulting intoxicated with money honour pride etc., Some has nothing, completely deprived of all resources, Some has sufficient to their survival, but what one can do change all this discrimination, the whole society system is like this ( sarcastic saying ).

मस्त : drunk, intoxicated
तिश्ना-लब : having parched lips, thirsty
जाम : glass of wine
मय-कदे : Bar, Pub, Tavern
निज़ाम : order, arrangement, system

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ये जनाब-ए-शैख़ का फ़ल्सफ़ा है अजीब सारे जहान से
जो वहाँ पियो तो हलाल है जो यहाँ पियो तो हराम है

Crux :
The Philosophy by Mr. Preacher is Strange as intoxication at the religious place in the God's love is permissible, in contrast intoxication in Pub is forbidden.

जनाब-ए-शैख़ : Mr. Preacher
फ़ल्सफ़ा : Philosophy
अजीब : Strange, odd
जहान : World
पियो : Drink
हलाल : With religious sanction, permissible, lawful
हराम : unlawful act, forbidden, prohibited, unlawful

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इसी काएनात में ऐ 'जिगर' कोई इंक़लाब उठेगा फिर
कि बुलंद हो के भी आदमी अभी ख़्वाहिशों का ग़ुलाम है

Crux :
The Poet Jigar confidently assuring himself about a revolution in this world to end the discrimination one day, but in spite of Greatness of human being still trapped in their desires and do needful for day to day life.

कायनात : सृष्टि, संसार, Universe, World
'जिगर' : Poet Pen Name , Jigar Moradabadi
इंकलाब : Revolution
बुलंद : high, great, raised, loud
आदमी : Man, human being (Lit. offspring of Adam)
ख़्वाहिशों : wishes, inlcinations इच्छाएँ; उमंग; अभिलाषाएँ
ग़ुलाम : Slave

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Kapil Jain
Noida, Uttar Pradesh 201303
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October 6th 2019

Thursday, March 21, 2019

How do pebbles become smooth and rounded ? In Hindi : आलू पत्थर : Story by Kapil Jain

आलू पत्थर : Story by Kapil Jain

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में
                                     ....बशीर बद्र

बहुत बचपन की बात होगी यह , मेरा अंदाज़ से ऋषिकेश से भी आगे और ऊँचाई पर गँगा नदी के बहुत तेज़ बहाव के साथ एक तट पर किसी आश्रम में हम ठहरें हुऐ थे , दिल्ली से आये व्यायाम विकास केंद्र नामक एक संस्थान के करीब अस्सी लोगों का ग्रुप दो बस कई पवित्र स्थानों के यात्रा के उद्देश्य से भृमण को निकले थे ।

बहती नदी के दोनों तटों पर हर तरफ बिखरे पत्थरो के गोल मटोल स्वरूप को देखकर उनकी शक़्ल बहुत हद तक आलू की तरह पाकर मैने अपने डैडी से सवाल किया की कितने खूबसूरत पत्थर हैं गोल मटोल और ज्यादातर सफ़ेद , कोई भी नुकीलापन नही , यह कैसे पत्थर हैं , दिल्ली में तो मैंने कभी भी गोल मटोल पत्थर नहीं देखे , और यहाँ गँगा तट पर इका दुका ही नुकीला पत्थर हैं , ऐसा क्यूँ ?

मेरे डैडी मुस्कुराते हुऐ बोले , बहुत ही अच्छी ऑब्जरवेशन हैं , कभी सोचा नहीं मैने , अभी हम इस नदी तट पर दो दिन और हैं , मैं भी सोचता हूँ , तुम भी सोचों , कल शाम हम दोनो ही किसी निष्कर्ष पर पहुँच ही जायेगे ।

मैं बहुत हैरान परेशान , वजह की डैडी को गोल मटोल पत्थर के रहस्य का पता नहीं , ऐसा कैसे हो सकता हैं , मेरे डैडी को तो मेरे हर सवाल का जवाब हमेशा पता होता हैं तो इस प्रश्न का उत्तर क्यूँ नही ? इस दुनिया में हर बच्चें के लिये उसका डैडी सँसार का सबसे ज्यादा ज्ञानवंत शक़्स होता हैं , जैसे मैने अभी हाल में ही किसी T-Shirt पर पढ़ा ”My Daddy is My ATM” , यहाँ ATM से मेरा मतलब All Time Money नहीं , बल्कि All Time Knowlege हैं ।

और उसके ऊपर उनकी रहस्यमयी मुस्कुराहट का क्या राज़ था ? आज मुझें यकीन हैं की वो अपने बेटे की गोल मटोल पत्थर से उपजी जिज्ञासा को देखकर मन ही मन आनन्दित हो रहे थे , आख़िर जिज्ञासा ही प्रगति की पहली सीढ़ी हैं और उनका बेटा उस पर सही दिशा में अग्रसर हैं , दूसरा यकीन यह भी हैं की डैडी को उस समय भी आलु पत्थर के स्वरूप के सृजन की प्रक्रिया का बख़ूबी जानकारी थी , उनका यह कहना की , अभी हम इस नदी तट पर दो दिन और हैं , मैं भी सोचता हूँ , तुम भी सोचों , से उनका तातपर्य , मेरी तर्कसंगत सोच को स्वयं विकसित करने की एक कोशिश थीं ।

रात को सपने में भी मुझे आलू पत्थर ही दिखाई दे रहे थे , उस ग्रुप के साथ यात्रा करने की एक मात्र मुसीबत थी सुबह सुबह उठकर व्यायाम की क्लास और सुर्य उदय के साथ सुर्य नमस्कार करना , इतनी सुबह उठना दुष्वार था परन्तु उसके बाद गँगा तट पर ठंड़ी हवा का अनुभव नैसर्गिक था , क्लास के बाद डैडी के साथ तट की लंबी सैर के दौरान , उनका इशारा उन बड़ी बड़ी चट्टानों की तऱफ जिनके कई नुकीले किनारों का गोल हो जाना जहां से पानी का बहाव सिर्फ़ बाढ़ इत्यादि के समय में जलस्तर बढ़ जाने की स्तिथि में ही टकराता होगा , जबकि आज इन चट्टानों से नदी कुछ दूरी  पर थी , यह इशारा आलू पत्थर के रहस्य को सुलझाने की एक चाबी थी ।

मुझे अब शाम तक इंतेज़ार की कोई ज़रूरत नही थी , मैने तुरँत जवाब दिया , डैडी पत्थर के जिन नुकीले किनारों से घर्षण करते हुऐ पानी तेज़ बहाव से गुजरता हैं वो घिस घिस कर गोल हो जाते हैं और आलू पत्थर बन जाते हैं , मेरे इस जवाब को सुनते ही वो ख़ुशी से आनंदित हो उठे , शाबाशी भरे स्वर से बोले Very Good , You have achieved yourself. , इस विचार, इस अनुभव का ,आपको आगे ज़िन्दगी में बेहद फ़ायदा मिलेगा , इस बचपन की उम्र में शायद समझ ना आये , पर ”आलू पत्थर” का आगे अर्थ , ज्ञानवान व्यक्तित्व , संगीतकार , कवि , शायर , भाषा , इत्यादि इत्यादी अनंत स्वरूपों में मिलेगा ।

आज जब में डैडी के उस व्यक्तव्य की याद करता हूँ तो गद गद हो उठता हूँ , आज आलू पत्थर की संज्ञा स्वरूप की मिसालें :

ज्ञानवान व्यक्तित्व जो बहुत ही विषम परिस्थितियों में बेहद सहजता से कामयाब हो जाते हैं उनके अनुभव ही उनके घर्षण थे, जैसे मेरे डैडी ।

संगीत की राग रागनी symphony music जो उस परिवेश की सोच की मानसिक तरंगों से संकलित निरंतर विकसित हो रही हैं । जहाँ कुछ दिल को नही छुआ वो घिस गया यानी वही स्वरबद्ध हो गया । कुमार गन्धर्व जी की गायकी , उनका गाया राग श्री इसकी जीवंत मिसाल हैं ।

विकसित हुई परिपक्व भाषाओं मे भी जो शब्द कान को चुभते हैं जैसे नुकीले पत्थर , उनका उपयोग सभ्य भाषा से हटता गया और भाषा में मिठास आ गयी । उर्दू बँगाली हिन्दी की काव्य कविता इसकी जीवंत मिसाल हैं ।

मिसालें उतनी अनुभव जितने

How do pebbles become smooth and rounded ?
In Hindi : आलू पत्थर : Story by Kapil Jain
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Day of Holi Festival
March 21st , 2019
Noida , U.P., India

Pebbles with streaks of Quarzite,
Photograph By Kapil Jain
Laddakh , J & K , India
August , 2014

Friday, March 15, 2019

चाँदी का वर्क : story by Kapil Jain

Happy Birthday Daddy
My Daddy Late Shri Karam Vir Jain
Born  : March 15th, 1927
Eternity : July 29th, 1990

Daddy's Birthday memoirs

चाँदी का वर्क : story by Kapil Jain

तब मेरी उम्र कोई नौ - दस वर्ष की रही होगी , अनंत चतुर्दशी के पावन महोत्सव के उपलक्ष्य हेतु निकलने वाले भगवान महावीर की शुशोभित सवारी की रथयात्रा दिखाने हमे डैडी हर साल जैन लाल मंदिर जी जो दिल्ली में लाल किले के सामने हैं लेकर जाते थे , वहाँ दर्शन के साथ साथ चाट पकौड़ी ,भल्ला पापड़ी जाने क्या क्या मज़े करते थे ।

चाँदनी चौक से निकल कर दरीबा कलाँ से चावड़ी बाजार होते हुऐ यह सवारी फ़िर लाल मंदिर पर वापस समाप्त होती थी , बहुत भीड़ होती थी पूरे रास्ते में , भक्त जन, इंद्र रूप में , नृत्य, संगीत ,फूलों की वर्षा , मंगल आरती करते हुऐ सवारी को आगे लेकर चलते थे , बहुत रमणीक दृश्य होता था ।

जब सवारी चावड़ी बाज़ार की तऱफ पहुँची तो सड़क थोड़ी सँकरी हो जाने की वजह से उपजी भीड़ से बचने के लिये , डैडी ने हमें एक गली से होकर सवारी से आगे अगले चौराहे पर पहुचाने का निर्णय लिया , वजह थी भीड़ से भरी सड़क पर छोटे बच्चों के साथ दिक्कत हो सकती थी ।

डैडी ने दोनों हाथों से मुझे और मेरी दीदी को पकड़ा , मम्मी भी पीछे आ रही थी , गली में हमारे जैसे कई लोग अगले चौराहे तक पहले पहुँचने के लिये आतुर थे इसलिये वहाँ भी काफ़ी हलचल थी ।

चूड़ीवालन नामक इस गली ने जैसे ही मोड़ लिया , एक आवाज़ ” कटाप्पा  कटाप्पा कटाप्पा कटाप्पा कटाप्पा ” जैसे कोई दिल और दिमाग दोनो पर एक साथ हथौड़ी से चोट कर रहा हो और वो भी एक मिनट में कोई सौ बार , अपने कान को तुरँत बंद करने को विवश मैने दूसरे हाथ की उंगली से कान बंद करते हुऐ , डैडी के पकड़े हाथ को ज़ोर से खिंचते हुऐ पूछा डैडी से कैसे आवाज़ हैं ?

डैडी इस इलाके के चप्पे चप्पे से वाकिफ़ थे , बोले बहुत अच्छा हुआ की बाय-चाँस हम आज इस तरह से निकले , तुम्हें बहुत ही नायाब कारीगरी दिखाता हूँ , और क्यों जैन धर्म में चाँदी के वर्क लगी मिठाई इत्यादि नही खानी चाहिये।

एक दुकान की तरफ़ बढ़ते हुऐ पाया की आवाज़ बहुत बेचैन कर देने की कैफ़ियत रखती थी , मैने कहा डैडी नहीं जाना उन्होंने जवाब दिया, क्यूँ नही , यह दुबारा नही देख पाओगे , चार कदम चलते ही एक जीना ऊपर की मंज़िल की तऱफ चढ़ रहा था ।

ऊपर पहुँचे तो देखा तीन कतारों में करीब बीस कारीगर बैठे हुऐ, लकड़ी की एक छोटी सी डंडी से एक आधी ईट नुमा जो चमड़े से लिपटी थी को लगातार पीट रहे थे , एक साथ बीसियों चोट वो भी इतनी तेज़ गति से लगभग एक सेकंड में दो बार , मिसाल के लिये चार पाँच ढ़ोल से उपजी आवाज़ जो लयबद्धता लिये हो , चार पाँच मिनेट ही हुऐ होंगे , एक साथ सारे कारीगर रुकें फ़िर चमड़े की परत हटाई तो पाया अंदर पीले चिकने कागज की नोटों जैसी गड्डी की प्रत्येक परत के बीच में चाँदी की एक महीन परत जिसे चाँदी का वर्क भी कहते हैं बना मिला , उस गड्डी को साइड रख कर , एक नई पीले चिकने कागज़ की गड्डी में प्रत्येक परत के बीच में चाँदी की एक एक टिकिया रख कर , एक साथ फ़िर पीटना शुरू किया । वहाँ तो कोई बात सुनाई नही दे सकती थी ।

नीचे आने के बाद डैडी ने बताया की एक साथ एक बैंड की तरह पीटने से ही आवाज़ सूरमयी हो जाती हैं परंतु आवाज़ की तीव्रता की वज़ह से नये सुनने वाले को असहनीय लगती हैं , इन बेचारे कारीगरों को तो इसके अलावा कोई चारा नही हैं , मान लो अगर यह अलग अलग समय में पीटेंगे तो आवाज़ इतनी असहनीय हो जायेगी जिसका कोई अंदाज़ लगाना भी मुश्किल हैं , और बताया इसके बिलकुल विपरीत , जब कोई फ़ौज़ी दस्ता किसी पुल पर से गुज़रता हैं तो कमान्डर दस्ते की कदम ताल तो ब्रेकअप कर देते हैं , अगर कदमताल एक जैसी तो resonance से पुल तक टूटने का ख़तरा हो सकता हैं , ऐसी हैं आवाज़ की ताक़त ।

वर्क बनाने में चमड़े के इतेमाल की वजह से जैन अनुयायी वर्क खाना नहीं पसंद करते हैं । अब जब चाँदी का वर्क अत्याधुनिक मशीन पर बनने लगा हैं और उस चाँदी की गुणवत्ता भी विश्वसनीय हैं इसलिये ही वस्तुस्थिति बदल गयी ।

आज भी जब में उस आवाज़ को याद करता हूँ तो सिर्फ़ एक शब्द से उसकी व्याख्या हो सकती हैं वो हैं ”वहशत”

एक पिता अपने बच्चे को कोई महीन ज्ञान किस तरकीब से दे सकता हैं , यह बात आज करीब चालीस साल बाद फ़िर याद आयी ।

चाँदी का वर्क : story by Kapil Jain
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Noida , U.P., India
March 15th , 2019


Saturday, February 9, 2019

Story Mahakavi by Kapil Jain

मम्मी , याद हैं मुझे आपकी खूबसूरत बातें , आप एक कहानी सुनाती थी , याद है आपका लहज़ा पूरी तरह, और यह कहानी आधी अधूरी ।

यह एक कुशाग्र बुद्धि बच्चे और उसकी माँ की कहानी हैं , गाँव में समय समय पर कोई बंजारे कोई कलाकार कोई साधु , लोक गीत गाते हुऐ भिक्षा इत्यादि के लिये रास्तों से गुजरते थे , बच्चा उनको देखता सुनता और कोतुहल से उन्हें टुकर टुकर निहारता , जब भी कोई संगीतमय आवाज़ सुनता तुरँत उनकी तरफ भगता और निहारता ।

उनके जाने के बाद , कुछ नुकीली कलम से दीवार पर टेढ़ी मेढ़ी लाइन लगाता,  उनकी आकृति उकेरने की कोशिश करता , यह सब माँ देखती थी , माँ उसे एक आचार्य के पास ले गयी और सब लक्षण बताते हुऐ बच्चे को विधिवत शिक्षित करने विनती की , बच्चा कुछ साल बाद शिक्षा के मध्यांतर में घर आया तो बहुत चंचल विद्यार्थी हो गया था ।

वो कुछ भी नया देखता सुनता तो तुरँत एक कलम से दीवार पर दोहे स्वरूप कुछ लिख देता , माँ समेत गाँव में जो कोई पढ़ता मंत्र मुग्ध हो जाता , अगले दिन फ़िर कोई नया विचार लिखने के लिये तुरँत पिछला लिखा दोहा मिटाता , फ़िर कोरी हुई दीवार पर नया दोहा लिखता ।

प्रति दिन अति उत्तम दोहा लिखना और अगले दिन ही मिटा देना,  कुछ गड़बड़ ज़रूर है , माँ ने यह जान लिया की इसका व्यक्तित्व में धैर्य की कमी हैं , और कुछ ठीक करने की ठानी , इलाज स्वरूप रात की बासी रोटी के साथ दही सुबह नाश्ते में दे कर प्रकृति में कुछ ठंडक लाने की कोशिश की , फलस्वरूप वो बच्चा जो अब बालक था , दीवार पर आज एक दोहा लिखा , अगले दिन उसके नीचे दूसरा दोहा , तीसरे दिन पहले दो के नीचे तीसरा दोहा , अतार्थ तीन दिन में तीन दोहे ।

माँ की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा , अब समझना था दीवार की जगह ताड़ के पत्ते पर दोहे लिखने की शिक्षा , अब तो यह बालक ताड़ के पत्ते पर परत दर परत लिखता गया ।

एक दिन बालक महाकवि और उनके रचित अनेक ग्रँथ महाकाव्य हुऐ । मेरी मम्मी ने जाने क्या नाम बताया था ?
महाकवि वृन्द या महाकवि कालिदास या महाकवि तुलसीदास या महाकवि ???

Story Mahakavi by Kapil Jain
February 8th , 2019
Noida , U.P. , India
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Sunday, January 20, 2019

”मिसेज़ ने" Story by Kapil Jain

”मिसेज़ ने" Story by Kapil Jain

बात करीब पैतीस चालीस साल पुरानी रही होगी ,
हीरामन जी हमारे कारखाने में काफी पुराने अतः विश्वसनीय मुलाज़िम थे , एक दिन डैडी से बोले, एक लड़का गाँव से आया हैं जान पहचान के घर से हैं अतः आप उसे नौकरी पर रख लीजिये , अच्छा आप ले आइयेगा डैडी ने हामी में जवाब दिया ।

हाँ चंद्रपाल ही नाम था उस लड़के का , पहली दृष्टि में ही कुछ अजीब चाल ढाल वेशभूषा , लगभग टपकते तेल से भरे बाल और उस पर बीच की मांग का हेयर स्टाइल , चेहरे पर एक सरसों के तेल की पर्त जैसे हम क्रीम लगाते हैं , आँखों में काज़ल की मोटी लकीर , बहुत चौड़े  पोंचे का पायजामा , और ठप ठप करते लकड़ी जैसे मोटे तले के जूते , और इस सब पर शरीर से सरसों के तेल की महक ,मक़सद कोई मज़ाक बनाना नही एक स्वरुप बताना हैं ।

चंद्रपाल एक बहुत शांत प्रकृति का बहुत ही कम बोलने वाला शक़्स था , कोई बात पूछने पर जवाब देने में उसका दो क्षण रुक कर जवाब देने की वजह से थोड़ा बोड़म बुद्धि भी प्रतीत होता था , जो अत्यंत ख़ास बात थी सिर्फ एक , जवाब का पहला अक्षर ’जी’ और वाक्य का आखरी अक्षर फ़िर ’जी’ , अपनी शिष्टभाषा से प्रथमदृष्टया सरसों के तेल वाली छवि को एक लम्हें में ही दूसरी पायदान पर अनायास ही पहुचाने में कामयाब हो जाता था ।

इस सबके बावजूद जब से वो हमारे यहाँ नौकरी पर आया उसकी उम्र कोई अठारह उन्नीस रही होगी , उत्तर प्रदेश के बदायूँ कस्बे के करीब किसी गाँव से आया था , डैडी ने हीरामन जी को ही उसे अपने साथ डिपार्टमेंट में रखने की हिदायत दी और उन्हें ही उसे काम सिखाने की जिम्मेदारी दी ।

गाँव देहात क़स्बे से सीधे दिल्ली आये किसी भी शक़्स को दिल्ली की चकाचोंध  समझने में जो एक आध महीना लगता है , जिसमे आस पास के लोगों द्वारा उसकी वेशभूषा भाषा और खास शब्दों के चयन और उच्चारण पर टेढ़ी नज़र और टीका टिप्पणी , किसी को भी थोड़ी देर परेशान रखने मजबूर कर ही देती हैं , चंद्रपाल के साथ भी कुछ ऐसा ही था , इसके अलावा वो खाने को लेकर भी बहुत परेशान था जाहिर था की गाँव में उसकी माँ के हाथ का  पकाया ममतामयी खाना , उसे खुद खाना बनाना नही आता था , नई नौकरी पर आये लड़के को झाड़ू पोछा सीनियर साथियों की डांट फटकार , कुल मिला कर शुरुवाती दो तीन महीने काफ़ी कष्टदायक थे ।

दो तीन महीने बाद तब तक डैडी को वो बहुत पसंद आ गया था पहला कारण जैसे ऊपर लिखा ’जी’ का इस्तेमाल और उसकी हिन्दी भाषा , बोली की शालीनता भरी सुरमयी शैली  , एक दिन जाने किस वजह से उसका लिखा कोई कागज़ डैडी के पास पहुँचा , अत्यंत कलात्मक हस्त लेखन देख कर उन्हें बहुत अच्छा लगा , जाहिर हैं हस्तलेख कला को डैडी जी तक पहुँचने में कोई दो तीन महीने लगे । उन दिनों छोटे स्तर की नौकरी में कोई लम्बी चौड़ी आवेदन पत्र इत्यादी की औपचारिकता नही था किसी की वाकफियत की सिफ़ारिश ही बहुत थी ।

डैडी का दिनचर्या की शुरुआत,व्यापार से संबंद्ध पत्रचार जो विभिन्न सरकारी एवं डीलर सप्लायर से करनी होती थी अतः रोज़ सुबह स्टेनोग्राफर ताम्बी जी आते तो डैडी उन्हें english dictation देते तो वो चिठ्ठी टाइप करके उन्हें भेज देते थे , ताम्बी जी केरल राज्य के थे , कुछ दिनों से डैडी कुछ हिन्दी भाषित जगहों पर जैसे उत्तर प्रदेश , बिहार , मध्य प्रदेश में हिन्दी में चिट्ठी भेजने के पक्ष में थे , परन्तु हिंदी की टाइपराइटर और टाइपिस्ट का अनुपलब्धता , कुल मिला कर उनका हिन्दी में चिट्ठी भेजने की महत्वकांक्षी योजना सिरे नही चढ़ रही थी ।

एक दिन डैडी ने प्रयोग हेतु चंद्रपाल को सामने एक टेबल पर कागज़ कलम देकर बिठाया और कहा जो मैं कहुँ आप लिखों , धीरे धीरे एक पेज की चिट्ठी का मज़्मून बता कर देखा क्या लिखा हैं , एकदम साफ लेखनी थी , सिर्फ़ एक नियोजित पत्र के फॉरमेट जैसे डेट की जगह , सेवा में , कैसे ,  निवेदन की जगह , विषय कहाँ इत्यादि इत्यादी को ठीक करके अलग अलग करीब तीन पत्र लिखवाये , उन तीन पत्रों को फ़िर फॉरमेट की दृष्टि से ठीक करके वापस दिये  कहा दुबारा नये सिरे से लिखों , चंद्रपाल ने दुबारा लिखे , फ़िर थोड़ी थोड़ी गलती रह गयी , फ़िर तीसरी बार लिखी गयी तब लगभग ठीक को गयी , डैडी के फाइनल चैक की और ख़ुश हो गये , तुरंत कंपनी के लैटर-हैड हिन्दी में प्रिंट करने का आर्डर पास की कृष्णा प्रिंटर को कर दिया , तीन चार दिन के बाद हिन्दी के लेटर-हैड आ गये ।

अब बारी थी सादे कागज़ पर चैक हो चुकी पत्र को प्रिंटिंड हिन्दी लेटर हैड पर दुबारा लिखकर पोस्ट करना , चंद्रपाल ने फटाफट लिखे , डैडी ने चैक किये पाया एक भी गलती नही थी , हस्ताक्षर किये और भेज दी गयी , बहुत ही शाबाशी दी हीरामन जी को बुलाया तो उनसे पता चला की उसे तो ज़ुनून सवार हो चुका था जिन दो तीन दिनों में जो प्रिंटिंग हो रही थी, छुटी के बाद देर रात तक चंद्रपाल चिठी को लिख लिख कर अभ्यास करता रहा इसलिये कोई गलती नहीं हुई ।

उसके बाद तो मानो आचुल परिवर्तन आ गया ,
चंद्रपाल का अब काम था पहले सादे कागज़ पर फ़िर लैटर हैड पर पत्र लिखना था , सारे दिन में वो करीब दस चिठी लिख लेता था , उसके पुराने सब छोटे मोटे कामों से उसका कब पीछा छूट गया पता ही नही चला , डैडी को सही हुनर को पहचानने का पुराना तजुर्बा था , चंद्रपाल को कहा गया की शाम को हिन्दी का अखबार ले जा कर पढ़ो खास कर संपादक को पत्र , उसका असर साफ़ दिखाई देने लगा पत्र की लेखनी में , अब सादे कागज़ पर पहले लिखने की ज़रूरत ख़त्म हो गयी , सीधे लेटर हैड पर पत्र लिखना शुरू हो गया ।

अब तक उसकी नौकरी का साल होने को आ गया था ,
उसके मनपसंद चिठी लिखने का काम , मालिक से मिली प्रशंसा , बारह महीने की बारह तन्ख्वाह, और दिल्ली शहर की आब-ओ-हवा , अब पायजामे की जगह शर्ट पैंट , तेल से चिपड़े बाल की जगह साफ सुधरे कटे बाल , इत्यादि इत्यादि । चंद्रपाल के व्यकित्व में एक सुखद परिवर्तन आ चुका था ।

छः सात साल बाद की बात हैं , चंद्रपाल छुटी लेकर गाँव गया , एक दिन वापस आया तो पता चला की शादी करवा कर आया हैं , थोड़े दिन बाद किसी सरकारी दफ़्तर में मेरे साथ गया , वहाँ गर्मी में पसीने को पूँछने के लिये रूमाल निकाला तो मैंने देखा सफ़ेद रुमाल पर गुलाबी धागे से कढ़ाई से लिखा था ”सप्रेम चंद्रपाल” मेरी भीनी सी मुस्कुराहट देखकर चंद्रपाल झेप गया , मैने पूछा यह किसने लिखा तो शर्माते हुऐ बोला  ”मिसेज़ ने”  ( Mrs.), जाने क्यूँ  चंद्रपाल की झेंप शर्माहट को देखकर मेरी हँसी  छुंट गयी , तुरँत बोला मुझे बहुत ही प्यार करती हैं हमारी मिसेज़ , उसका मिसेज़ का उच्चारण बहुत ही प्रेम में पूरी तरह डूबा हुआ था , आज भी मैं सोचता हूँ तो जाने क्यूँ एक अजीब से प्रेम की तरंग दो प्रेमियों में महसूस कर सकता हूँ

....शेष कभी आगे कड़ी में
_________________________

”मिसेज़ ने" Story by Kapil Jain
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Noida,  201313, U.P., INDIA
January 20th, 2019

Monday, January 14, 2019

कुछ और हिम्मत रख रोशनी यक़ीनन मिलेगी

Happy Lohri

कुछ और हिम्मत रख रोशनी यक़ीनन मिलेगी
पीछे गहरे अंधेरे पार हुऐ सिर्फ़ अपने हौसलों से
                                       ......कपिल जैन

Ladakh, J & K, INDIA
Photograph by Kapil Jain with Kamini Jain
August, 2014

Sunday, January 13, 2019

wo ham-safar tha magar us se ham-nawai na thi " By Naseer Turabi.

Kapil Jain's Understanding of the Ghazal " wo ham-safar tha magar us se ham-nawai na thi " By Naseer Turabi.

Preface :  As a student of Urdu Poetry, Come across a very unique style of writing & subject, which is strange enough, though properly understood but still to imbibe in its completeness.
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वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी

मोहब्बतों का सफ़र इस तरह भी गुज़रा था
शिकस्ता-दिल थे मुसाफ़िर शिकस्ता-पाई न थी

कभी ये हाल कि दोनों में यक-दिली थी बहुत
कभी ये मरहला जैसे कि आश्नाई न थी

न अपना रंज न औरों का दुख न तेरा मलाल
शब-ए-फ़िराक़ कभी हम ने यूँ गँवाई न थी

अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी

बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी

अजीब होती है राह-ए-सुख़न भी देख 'नसीर'
वहाँ भी आ गए आख़िर, जहाँ रसाई न थी

                                ........... नसीर तुराबी
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वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी

हम-नवाई : like mindedness

Companion (beloved) was a like a Co-Passanger, the relationship has good and fair times but hardly any like-mindedness between us.
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मोहब्बतों का सफ़र इस तरह भी गुज़रा था
शिकस्ता-दिल थे मुसाफ़िर शिकस्ता-पाई न थी

शिकस्ता-दिल : broken hearted, distressed

शिकस्ता-पाई : broken feet

Love wrapped journey went like broken hearted traveller moving together but still has not willing to stop as feets were having the courage to move forward.
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कभी ये हाल कि दोनों में यक-दिली थी बहुत
कभी ये मरहला जैसे कि आश्नाई न थी

यक-दिली : unanimity,concord
मरहला : a stage, an inn, a difficulty
आश्नाई : friendship, love, दोस्ती, संबंध

At times there was a concord in union, then there was a stage where hardly any existence of love remains.

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न अपना रंज न औरों का दुख न तेरा मलाल
शब-ए-फ़िराक़ कभी हम ने यूँ गँवाई न थी

रंज : grief, sorrow, दुख
दुख : suffering, distress
मलाल : regret, grief, sorrow
शब-ए-फ़िराक़ : the night of separation
गँवाई : lose, throw away, waste

Neither any grief No suffering Nor any regret, though we were together but as good as separated, both had the patience to be in themselves but certainly not together.
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अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी

अदावतें : enmity, animosity (plural)
तग़ाफ़ुल : neglect
रंजिशें : unpleasantness, affliction
बेवफ़ाई : faithlessness, treachery

The relationship has animosity, neglect, unpleasantness even though at the time of separation faithful to each other.
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बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी

At the time of separation, beloved's eyes were having the inspiration for my next poem, which is still to come in existence.
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अजीब होती है राह-ए-सुख़न भी देख 'नसीर'
वहाँ भी आ गए आख़िर, जहाँ रसाई न थी

अजीब : strange, astonishing
राह-ए-सुख़न : way of poetry / art.
'नसीर' : the Poet नसीर तुराबी
रसाई : access, reach, skill, approach

The astonishing part of any creative art ( here refers as poetry ) is that an inspirational can come even from the strangest experiences or unthinkable sudden moments, where generally one cannot even think to reach.

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Kapil Jain
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January 14th, 2018

Tuesday, January 8, 2019

कोई अज़्म नहीं एक ग़रज़ हैं घर के वजूद की


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कोई अज़्म नहीं एक ग़रज़ हैं घर के वजूद की
कोई शौकिया यह करतब अपने लिये क्यूँ करे ?
                                          ...कपिल जैन

Workers lying wires on
Hi-Tension Electrical Towers
Okhla Industrial Area, New Delhi
January 2016

Photograph by Kapil Jain

अज़्म : conviction, determination, intention
ग़रज़ : intention, object, purpose, end
वजूद : existence, being, life