Saturday, February 9, 2019

Story Mahakavi by Kapil Jain

मम्मी , याद हैं मुझे आपकी खूबसूरत बातें , आप एक कहानी सुनाती थी , याद है आपका लहज़ा पूरी तरह, और यह कहानी आधी अधूरी ।

यह एक कुशाग्र बुद्धि बच्चे और उसकी माँ की कहानी हैं , गाँव में समय समय पर कोई बंजारे कोई कलाकार कोई साधु , लोक गीत गाते हुऐ भिक्षा इत्यादि के लिये रास्तों से गुजरते थे , बच्चा उनको देखता सुनता और कोतुहल से उन्हें टुकर टुकर निहारता , जब भी कोई संगीतमय आवाज़ सुनता तुरँत उनकी तरफ भगता और निहारता ।

उनके जाने के बाद , कुछ नुकीली कलम से दीवार पर टेढ़ी मेढ़ी लाइन लगाता,  उनकी आकृति उकेरने की कोशिश करता , यह सब माँ देखती थी , माँ उसे एक आचार्य के पास ले गयी और सब लक्षण बताते हुऐ बच्चे को विधिवत शिक्षित करने विनती की , बच्चा कुछ साल बाद शिक्षा के मध्यांतर में घर आया तो बहुत चंचल विद्यार्थी हो गया था ।

वो कुछ भी नया देखता सुनता तो तुरँत एक कलम से दीवार पर दोहे स्वरूप कुछ लिख देता , माँ समेत गाँव में जो कोई पढ़ता मंत्र मुग्ध हो जाता , अगले दिन फ़िर कोई नया विचार लिखने के लिये तुरँत पिछला लिखा दोहा मिटाता , फ़िर कोरी हुई दीवार पर नया दोहा लिखता ।

प्रति दिन अति उत्तम दोहा लिखना और अगले दिन ही मिटा देना,  कुछ गड़बड़ ज़रूर है , माँ ने यह जान लिया की इसका व्यक्तित्व में धैर्य की कमी हैं , और कुछ ठीक करने की ठानी , इलाज स्वरूप रात की बासी रोटी के साथ दही सुबह नाश्ते में दे कर प्रकृति में कुछ ठंडक लाने की कोशिश की , फलस्वरूप वो बच्चा जो अब बालक था , दीवार पर आज एक दोहा लिखा , अगले दिन उसके नीचे दूसरा दोहा , तीसरे दिन पहले दो के नीचे तीसरा दोहा , अतार्थ तीन दिन में तीन दोहे ।

माँ की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा , अब समझना था दीवार की जगह ताड़ के पत्ते पर दोहे लिखने की शिक्षा , अब तो यह बालक ताड़ के पत्ते पर परत दर परत लिखता गया ।

एक दिन बालक महाकवि और उनके रचित अनेक ग्रँथ महाकाव्य हुऐ । मेरी मम्मी ने जाने क्या नाम बताया था ?
महाकवि वृन्द या महाकवि कालिदास या महाकवि तुलसीदास या महाकवि ???

Story Mahakavi by Kapil Jain
February 8th , 2019
Noida , U.P. , India
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Kapil Jain
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