Kapil Jain's Story : "झूठी गुठली"
कल ही फैक्ट्री का हमारा पुराना चपरासी मदन गांव से छुटटी बीता कर वापस आया । दिन के खाने के समय में मैने कहा , मदन भाई हमारा टिफ़िन गरम कर दो , वो खाना गरम करके हमेशा की तरह थाली में परोस कर लाया।
मैने देखा थाली मे ताज़ी इमली भी सजी थी , मैने नज़र उठा कर जैसे मदन को देखा , वो बोला भाई साहिब , हमारे गाँव की इमली बहुत मीठी होती है , इत्तफ़ाक़ से अबकी बार ताज़ी ही उतरी थी सो हम आपके लिए भी ले आये ।
इमली बहुत ही बढ़िया थी । खाने के बाद, झुठी थाली मे , करीब दस - बारह गुठली थी । मैने राेज की तरह, मदन को बुला कर टेबल को साफ करने को कहा ।पता नहीं क्यों ? मैने सवालिया अंदाज़ मे उससे पूछा , कि इन गुठलियों को अगर ज़मींन में बो दें तो क्या ईमली का पेड़ हो जायेगा।
वो बोला की हो तो जायेगी पर हम सच्ची इमली से गुठली निकाला कर बोएगे , यह सब गुठली झुठी हो गयी है ।
मै लाज़वाब हो गया ।
जाकी रही भावना जैसी.........
Kapil Jain
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27th May 2015, Noida