Thursday, March 21, 2019

How do pebbles become smooth and rounded ? In Hindi : आलू पत्थर : Story by Kapil Jain

आलू पत्थर : Story by Kapil Jain

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में
                                     ....बशीर बद्र

बहुत बचपन की बात होगी यह , मेरा अंदाज़ से ऋषिकेश से भी आगे और ऊँचाई पर गँगा नदी के बहुत तेज़ बहाव के साथ एक तट पर किसी आश्रम में हम ठहरें हुऐ थे , दिल्ली से आये व्यायाम विकास केंद्र नामक एक संस्थान के करीब अस्सी लोगों का ग्रुप दो बस कई पवित्र स्थानों के यात्रा के उद्देश्य से भृमण को निकले थे ।

बहती नदी के दोनों तटों पर हर तरफ बिखरे पत्थरो के गोल मटोल स्वरूप को देखकर उनकी शक़्ल बहुत हद तक आलू की तरह पाकर मैने अपने डैडी से सवाल किया की कितने खूबसूरत पत्थर हैं गोल मटोल और ज्यादातर सफ़ेद , कोई भी नुकीलापन नही , यह कैसे पत्थर हैं , दिल्ली में तो मैंने कभी भी गोल मटोल पत्थर नहीं देखे , और यहाँ गँगा तट पर इका दुका ही नुकीला पत्थर हैं , ऐसा क्यूँ ?

मेरे डैडी मुस्कुराते हुऐ बोले , बहुत ही अच्छी ऑब्जरवेशन हैं , कभी सोचा नहीं मैने , अभी हम इस नदी तट पर दो दिन और हैं , मैं भी सोचता हूँ , तुम भी सोचों , कल शाम हम दोनो ही किसी निष्कर्ष पर पहुँच ही जायेगे ।

मैं बहुत हैरान परेशान , वजह की डैडी को गोल मटोल पत्थर के रहस्य का पता नहीं , ऐसा कैसे हो सकता हैं , मेरे डैडी को तो मेरे हर सवाल का जवाब हमेशा पता होता हैं तो इस प्रश्न का उत्तर क्यूँ नही ? इस दुनिया में हर बच्चें के लिये उसका डैडी सँसार का सबसे ज्यादा ज्ञानवंत शक़्स होता हैं , जैसे मैने अभी हाल में ही किसी T-Shirt पर पढ़ा ”My Daddy is My ATM” , यहाँ ATM से मेरा मतलब All Time Money नहीं , बल्कि All Time Knowlege हैं ।

और उसके ऊपर उनकी रहस्यमयी मुस्कुराहट का क्या राज़ था ? आज मुझें यकीन हैं की वो अपने बेटे की गोल मटोल पत्थर से उपजी जिज्ञासा को देखकर मन ही मन आनन्दित हो रहे थे , आख़िर जिज्ञासा ही प्रगति की पहली सीढ़ी हैं और उनका बेटा उस पर सही दिशा में अग्रसर हैं , दूसरा यकीन यह भी हैं की डैडी को उस समय भी आलु पत्थर के स्वरूप के सृजन की प्रक्रिया का बख़ूबी जानकारी थी , उनका यह कहना की , अभी हम इस नदी तट पर दो दिन और हैं , मैं भी सोचता हूँ , तुम भी सोचों , से उनका तातपर्य , मेरी तर्कसंगत सोच को स्वयं विकसित करने की एक कोशिश थीं ।

रात को सपने में भी मुझे आलू पत्थर ही दिखाई दे रहे थे , उस ग्रुप के साथ यात्रा करने की एक मात्र मुसीबत थी सुबह सुबह उठकर व्यायाम की क्लास और सुर्य उदय के साथ सुर्य नमस्कार करना , इतनी सुबह उठना दुष्वार था परन्तु उसके बाद गँगा तट पर ठंड़ी हवा का अनुभव नैसर्गिक था , क्लास के बाद डैडी के साथ तट की लंबी सैर के दौरान , उनका इशारा उन बड़ी बड़ी चट्टानों की तऱफ जिनके कई नुकीले किनारों का गोल हो जाना जहां से पानी का बहाव सिर्फ़ बाढ़ इत्यादि के समय में जलस्तर बढ़ जाने की स्तिथि में ही टकराता होगा , जबकि आज इन चट्टानों से नदी कुछ दूरी  पर थी , यह इशारा आलू पत्थर के रहस्य को सुलझाने की एक चाबी थी ।

मुझे अब शाम तक इंतेज़ार की कोई ज़रूरत नही थी , मैने तुरँत जवाब दिया , डैडी पत्थर के जिन नुकीले किनारों से घर्षण करते हुऐ पानी तेज़ बहाव से गुजरता हैं वो घिस घिस कर गोल हो जाते हैं और आलू पत्थर बन जाते हैं , मेरे इस जवाब को सुनते ही वो ख़ुशी से आनंदित हो उठे , शाबाशी भरे स्वर से बोले Very Good , You have achieved yourself. , इस विचार, इस अनुभव का ,आपको आगे ज़िन्दगी में बेहद फ़ायदा मिलेगा , इस बचपन की उम्र में शायद समझ ना आये , पर ”आलू पत्थर” का आगे अर्थ , ज्ञानवान व्यक्तित्व , संगीतकार , कवि , शायर , भाषा , इत्यादि इत्यादी अनंत स्वरूपों में मिलेगा ।

आज जब में डैडी के उस व्यक्तव्य की याद करता हूँ तो गद गद हो उठता हूँ , आज आलू पत्थर की संज्ञा स्वरूप की मिसालें :

ज्ञानवान व्यक्तित्व जो बहुत ही विषम परिस्थितियों में बेहद सहजता से कामयाब हो जाते हैं उनके अनुभव ही उनके घर्षण थे, जैसे मेरे डैडी ।

संगीत की राग रागनी symphony music जो उस परिवेश की सोच की मानसिक तरंगों से संकलित निरंतर विकसित हो रही हैं । जहाँ कुछ दिल को नही छुआ वो घिस गया यानी वही स्वरबद्ध हो गया । कुमार गन्धर्व जी की गायकी , उनका गाया राग श्री इसकी जीवंत मिसाल हैं ।

विकसित हुई परिपक्व भाषाओं मे भी जो शब्द कान को चुभते हैं जैसे नुकीले पत्थर , उनका उपयोग सभ्य भाषा से हटता गया और भाषा में मिठास आ गयी । उर्दू बँगाली हिन्दी की काव्य कविता इसकी जीवंत मिसाल हैं ।

मिसालें उतनी अनुभव जितने

How do pebbles become smooth and rounded ?
In Hindi : आलू पत्थर : Story by Kapil Jain
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Day of Holi Festival
March 21st , 2019
Noida , U.P., India

Pebbles with streaks of Quarzite,
Photograph By Kapil Jain
Laddakh , J & K , India
August , 2014

Friday, March 15, 2019

चाँदी का वर्क : story by Kapil Jain

Happy Birthday Daddy
My Daddy Late Shri Karam Vir Jain
Born  : March 15th, 1927
Eternity : July 29th, 1990

Daddy's Birthday memoirs

चाँदी का वर्क : story by Kapil Jain

तब मेरी उम्र कोई नौ - दस वर्ष की रही होगी , अनंत चतुर्दशी के पावन महोत्सव के उपलक्ष्य हेतु निकलने वाले भगवान महावीर की शुशोभित सवारी की रथयात्रा दिखाने हमे डैडी हर साल जैन लाल मंदिर जी जो दिल्ली में लाल किले के सामने हैं लेकर जाते थे , वहाँ दर्शन के साथ साथ चाट पकौड़ी ,भल्ला पापड़ी जाने क्या क्या मज़े करते थे ।

चाँदनी चौक से निकल कर दरीबा कलाँ से चावड़ी बाजार होते हुऐ यह सवारी फ़िर लाल मंदिर पर वापस समाप्त होती थी , बहुत भीड़ होती थी पूरे रास्ते में , भक्त जन, इंद्र रूप में , नृत्य, संगीत ,फूलों की वर्षा , मंगल आरती करते हुऐ सवारी को आगे लेकर चलते थे , बहुत रमणीक दृश्य होता था ।

जब सवारी चावड़ी बाज़ार की तऱफ पहुँची तो सड़क थोड़ी सँकरी हो जाने की वजह से उपजी भीड़ से बचने के लिये , डैडी ने हमें एक गली से होकर सवारी से आगे अगले चौराहे पर पहुचाने का निर्णय लिया , वजह थी भीड़ से भरी सड़क पर छोटे बच्चों के साथ दिक्कत हो सकती थी ।

डैडी ने दोनों हाथों से मुझे और मेरी दीदी को पकड़ा , मम्मी भी पीछे आ रही थी , गली में हमारे जैसे कई लोग अगले चौराहे तक पहले पहुँचने के लिये आतुर थे इसलिये वहाँ भी काफ़ी हलचल थी ।

चूड़ीवालन नामक इस गली ने जैसे ही मोड़ लिया , एक आवाज़ ” कटाप्पा  कटाप्पा कटाप्पा कटाप्पा कटाप्पा ” जैसे कोई दिल और दिमाग दोनो पर एक साथ हथौड़ी से चोट कर रहा हो और वो भी एक मिनट में कोई सौ बार , अपने कान को तुरँत बंद करने को विवश मैने दूसरे हाथ की उंगली से कान बंद करते हुऐ , डैडी के पकड़े हाथ को ज़ोर से खिंचते हुऐ पूछा डैडी से कैसे आवाज़ हैं ?

डैडी इस इलाके के चप्पे चप्पे से वाकिफ़ थे , बोले बहुत अच्छा हुआ की बाय-चाँस हम आज इस तरह से निकले , तुम्हें बहुत ही नायाब कारीगरी दिखाता हूँ , और क्यों जैन धर्म में चाँदी के वर्क लगी मिठाई इत्यादि नही खानी चाहिये।

एक दुकान की तरफ़ बढ़ते हुऐ पाया की आवाज़ बहुत बेचैन कर देने की कैफ़ियत रखती थी , मैने कहा डैडी नहीं जाना उन्होंने जवाब दिया, क्यूँ नही , यह दुबारा नही देख पाओगे , चार कदम चलते ही एक जीना ऊपर की मंज़िल की तऱफ चढ़ रहा था ।

ऊपर पहुँचे तो देखा तीन कतारों में करीब बीस कारीगर बैठे हुऐ, लकड़ी की एक छोटी सी डंडी से एक आधी ईट नुमा जो चमड़े से लिपटी थी को लगातार पीट रहे थे , एक साथ बीसियों चोट वो भी इतनी तेज़ गति से लगभग एक सेकंड में दो बार , मिसाल के लिये चार पाँच ढ़ोल से उपजी आवाज़ जो लयबद्धता लिये हो , चार पाँच मिनेट ही हुऐ होंगे , एक साथ सारे कारीगर रुकें फ़िर चमड़े की परत हटाई तो पाया अंदर पीले चिकने कागज की नोटों जैसी गड्डी की प्रत्येक परत के बीच में चाँदी की एक महीन परत जिसे चाँदी का वर्क भी कहते हैं बना मिला , उस गड्डी को साइड रख कर , एक नई पीले चिकने कागज़ की गड्डी में प्रत्येक परत के बीच में चाँदी की एक एक टिकिया रख कर , एक साथ फ़िर पीटना शुरू किया । वहाँ तो कोई बात सुनाई नही दे सकती थी ।

नीचे आने के बाद डैडी ने बताया की एक साथ एक बैंड की तरह पीटने से ही आवाज़ सूरमयी हो जाती हैं परंतु आवाज़ की तीव्रता की वज़ह से नये सुनने वाले को असहनीय लगती हैं , इन बेचारे कारीगरों को तो इसके अलावा कोई चारा नही हैं , मान लो अगर यह अलग अलग समय में पीटेंगे तो आवाज़ इतनी असहनीय हो जायेगी जिसका कोई अंदाज़ लगाना भी मुश्किल हैं , और बताया इसके बिलकुल विपरीत , जब कोई फ़ौज़ी दस्ता किसी पुल पर से गुज़रता हैं तो कमान्डर दस्ते की कदम ताल तो ब्रेकअप कर देते हैं , अगर कदमताल एक जैसी तो resonance से पुल तक टूटने का ख़तरा हो सकता हैं , ऐसी हैं आवाज़ की ताक़त ।

वर्क बनाने में चमड़े के इतेमाल की वजह से जैन अनुयायी वर्क खाना नहीं पसंद करते हैं । अब जब चाँदी का वर्क अत्याधुनिक मशीन पर बनने लगा हैं और उस चाँदी की गुणवत्ता भी विश्वसनीय हैं इसलिये ही वस्तुस्थिति बदल गयी ।

आज भी जब में उस आवाज़ को याद करता हूँ तो सिर्फ़ एक शब्द से उसकी व्याख्या हो सकती हैं वो हैं ”वहशत”

एक पिता अपने बच्चे को कोई महीन ज्ञान किस तरकीब से दे सकता हैं , यह बात आज करीब चालीस साल बाद फ़िर याद आयी ।

चाँदी का वर्क : story by Kapil Jain
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kapilrishabh@gmail.com
Noida , U.P., India
March 15th , 2019