Short Story by Kapil Jain : धोती से बंधी गांठ
बात करीब 1986 - 87 की रही होगी , चाँदनी चौक में दरीबा कलां बाजार के आसपास की ,
हमारे डैडी जी के पुराने व्यापारिक सहयोगी श्री मिट्ठन लाल जी की दूकान से कुछ सामान खरीदना था , मैं प्रथम बार उनकी दुकान पर जा रहा था , शायद गलत पता था या समझने या समझाने की किसी गलती से उनकी दुकान नही मिल रही थी ,
उन दिनों मोबाइल फोन उपलब्ध नही थे , काफी देर परेशान होने
के बाद मैं कोई पब्लिक फोन तलाश रहा था ताकि फोन से सही पता पूछूँ , या घर से उनकी दुकान का सही पता पूछूँ ,
अभी यह उधेड़बुन चल ही रहीं थी कि खयाल आया कि एक आध बार श्री मिट्ठन लाल जी , गौरी शंकर मंदिर के सामने फूलों की दुकान पर हमे मिले थे जब इतवार को डैडी जी हमे जैन लाल मंदिर जी के दर्शन करवाने ले जाते थे , मुझे यकीन था फूल वाले मुझे सही पता जरूर बतायेंगे ।
बिल्कुल वही हुआ , शानदार खुशबू से लबरेज़ फूलों के विक्रेता ने मुझे सटीक पता और रास्ता दोनों बताये , बहुत ही बढ़िया व्यक्ति थे वह , उसी ही वक़्त के एक मोटे लाला जी पूरे मुँह में पान दबाये फूल खरीद रहे थे , गोरे चिट्टे माथे पर केसरी तिलक, चकाचक कलफदार सफ़ेद कुर्ता धोती और खास पश्मीना शाल, कुल मिलाकर चाहे एक झलक ही सही , बिना देखे ना रहने वाली शख्सियत थे वो,
चूँकि मुझे जल्दी थी मैं तुरँत श्री मिट्ठन लाल जी की दुकान की तरफ लपका , मिल भी गयी , जब वापस आ रहा था , तभी दरीबा और चांदनी चौक के तिराहे पर झगड़ा सा या मजमा लगा हुआ था , एक नज़र से पड़ी तो देखा वहीं फूल वाली दुकान पर मिले लाला जी ने किसी व्यक्ति को पकड़ रखा था और चारों और हुज़ूम , इतने भीड़ भाड़ वाले इलाके में दस बारह लोगो का मजमा सेकंडों में लग जाना आम बात है , देखते ही देखते पुलिस भी आन पड़ी ,
लाला जी का कहना था कि यह शाल मेरा हैं , अरे हाँ यही शाल तो मैंने भी देखा था क्या खूब फब रहा था लाला जी पर फूल की दुकान पर , यह माजरा क्या है , लाला जी ने अबकी बार ज़ोर देकर कहा , यह शाल मेरा हैं ,
दूसरे व्यक्ति ने पुलिस से कहा कि यह शाल उसका हैं , यह शाल इस लाला का कैसे हो सकता हैं ? देखो इस शाल के एक कोने से यह गांठ भी मैने अपनी धोती से बाँध रखी है । बाबुजी यह चाँदनी चौक है , यहाँ तो अच्छे खासे दिखने वाले लोग भी दूसरों के कंधे से शाल तक खिंच लेते है , इसलिये ही मैं शाल तो धोती से बांध कर चलता हूँ ताकि कोई लूट खसोट ना हो सके ,यह सुनकर मैं हैरान हो गया , मैने सोचा यह सब क्या है । यह लाला जी की शाल की गांठ इस व्यक्ति की धोती से कैसे बंध गयी , आखिर गांठ बाँधने में कुछ सेकण्ड तो लगेंगे ?
लाला जी भी कम ना थे उन्होंने शाल पर लिखे कारीगर का नाम बताते हुये पुलिस को दिखा दिया , उन्होंने कहा कि चलते हुऐ एक झटका लगा जैसे किसी ने पीठ पर धक्का दिया हो और पीछे कुर्ते का पोहचु खींच लिया हो , संभल कर पीछे देखा कि मेरा शाल लेकर यह भागने की फिराक़ में था , बड़ी मुश्किल से पकड़ा मैंने इसे ,
पुलिस वाले तो उड़ती चिड़िया के पर गिन ले, जैसे ही उस ठग को एक कड़क झिड़की दी तो उसने सारी बात सच उगल दी, भीड भाड़ में पीछे पीछे चलते चलते , लाला जी के पश्मीना शाल के कोने से उसने अपनी धोती के पल्लू को गांठ लगा ली , और मौका देखते ही झटके से शाल खींच ली और अपनी बताने लगा , सबूत में गांठ दिखाने लगा, अगर रफूचक्कर होने में कामयाब हो जाता, तो कोई माई का लाल इस चोरी को साबित नही कर सकता था ।।
सोचिये : धोती से बँधी शाल को कोई चोरी की कैसे बतायेगा ?
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Short Story by Kapil Jain : धोती से बंधी गांठ
Noida, Uttar Pradesh, India
3rd August 2020
Kapilrishabh@gmail.com
With Kamini Jain