उल्लू का पट्ठा : एक हीन हकीकत : Short Story By Kapil Jain
हीन भावना , मानस से जाने कैसे कैसे नई ईजाद कराती हैं , जैसे जुमला 'उल्लू का पट्ठा' ..
गौरवमयी पक्षी उल्लू मैने सिर्फ पाँच छः बार आमने सामने देखा है , इस स्टोरी के साथ सारी फ़ोटोज मैंने ही खींची थीं ।
उल्लू की नज़र से नज़र मिलते ही , दिल के अंदर एक सच्चाई तो पूरी तरह उतर जाती हैं की यह पक्षी, मानव से कई गुणों में उच्च पदवी लिये हैं ।
बड़ी बड़ी आँखों में स्थिर पुतली लिये एक आत्मविश्वासी चेहरा , 270 डिग्री यानी तीन दिशाओं में घुमाने की काबलियत लिये , नामुमकिन शांत उड़ान , अपनी गुमनामी में मस्त ।
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में एक पेड़ के ऊपर एक घोसलें में एक बड़े उल्लू को देखते के लिये जमा फोटोग्राफी के शौकीनों की टोली में एक बेइंतहा खूबसूरत हसीन लड़की ने जब कहा , ’कितना हैंडसम हैं ’ वो भी उस उल्लू के लिऐ ।
शाम होटल के बाथरूम में मैंने खुद की शक़्ल आईने में देख कर सोचा ? कपिल कभी तुझको कभी किसी ने इतनी हसरत भरी निगाहों से हैंडसम कहा है , शायद नही , भीतर से एक कमतरी का अहसास कैफ़ियत पर तारी हो गया ।
बस यही वो बुनियाद हैं जिससे कभी इतिहास मे ’उल्लू के पट्ठे’ जुमले का जन्म हुआ होगा , शायद हीन आदमी स्वभाव की स्वाभाविक अभिव्यक्ति...
Short Story By Kapil Jain
Noida, April 2020
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