हमसे कहे कुछ दोस्त हमारे , मत लिखो,
जान अगर प्यारी है प्यारे, मत लिखो
हाकिम की तलवार मुकदस् होती है
हाकिम की तलवार के बारे , मत लिखो ,
बस वो लिखो जो अमीरे - शहर कहे ,
जो कहते है दर्द के मारे , मत लिखो ,
खुद मुन्सिफ़ पाबस्ता है लब-बस्ता है
कौन कहा अब अर्ज़ गुजरे, मत लिखों,
दिल कहता है , खुल कर सच्ची बात लिखो ,
और लफ्ज़ों के बीच सितारे , मत लिखो,
हमसे कहे कुछ दोस्त हमारे , मत लिखो,
जान अगर प्यारी है प्यारे, मत लिखो.....
........अहमद फ़राज़
behad umda likhe ho janab ....
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