मुझको यकीं है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद मे परियां रहती थी
एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाखें बोझ हमारा सहती थी
एक ये दिन जब सारी सड़के रूठी रूठी लगती है
एक वो दिन जब आओ खेलें सारी गलियां कहती थी
एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती है
एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझिल रहती थी
एक ये दिन जब लाखों गम और काल पड़ा है आँसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदिया बहती थी
एक ये घर जिसमे मेरा साजो समां रहता है
एक वो घर जिसमे मेरी बूढी नानी रहती थी
मुझको यकीं है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थी
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद मे परियां रहती थी
.......जावेद अख्तर
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