Sunday, January 20, 2019

”मिसेज़ ने" Story by Kapil Jain

”मिसेज़ ने" Story by Kapil Jain

बात करीब पैतीस चालीस साल पुरानी रही होगी ,
हीरामन जी हमारे कारखाने में काफी पुराने अतः विश्वसनीय मुलाज़िम थे , एक दिन डैडी से बोले, एक लड़का गाँव से आया हैं जान पहचान के घर से हैं अतः आप उसे नौकरी पर रख लीजिये , अच्छा आप ले आइयेगा डैडी ने हामी में जवाब दिया ।

हाँ चंद्रपाल ही नाम था उस लड़के का , पहली दृष्टि में ही कुछ अजीब चाल ढाल वेशभूषा , लगभग टपकते तेल से भरे बाल और उस पर बीच की मांग का हेयर स्टाइल , चेहरे पर एक सरसों के तेल की पर्त जैसे हम क्रीम लगाते हैं , आँखों में काज़ल की मोटी लकीर , बहुत चौड़े  पोंचे का पायजामा , और ठप ठप करते लकड़ी जैसे मोटे तले के जूते , और इस सब पर शरीर से सरसों के तेल की महक ,मक़सद कोई मज़ाक बनाना नही एक स्वरुप बताना हैं ।

चंद्रपाल एक बहुत शांत प्रकृति का बहुत ही कम बोलने वाला शक़्स था , कोई बात पूछने पर जवाब देने में उसका दो क्षण रुक कर जवाब देने की वजह से थोड़ा बोड़म बुद्धि भी प्रतीत होता था , जो अत्यंत ख़ास बात थी सिर्फ एक , जवाब का पहला अक्षर ’जी’ और वाक्य का आखरी अक्षर फ़िर ’जी’ , अपनी शिष्टभाषा से प्रथमदृष्टया सरसों के तेल वाली छवि को एक लम्हें में ही दूसरी पायदान पर अनायास ही पहुचाने में कामयाब हो जाता था ।

इस सबके बावजूद जब से वो हमारे यहाँ नौकरी पर आया उसकी उम्र कोई अठारह उन्नीस रही होगी , उत्तर प्रदेश के बदायूँ कस्बे के करीब किसी गाँव से आया था , डैडी ने हीरामन जी को ही उसे अपने साथ डिपार्टमेंट में रखने की हिदायत दी और उन्हें ही उसे काम सिखाने की जिम्मेदारी दी ।

गाँव देहात क़स्बे से सीधे दिल्ली आये किसी भी शक़्स को दिल्ली की चकाचोंध  समझने में जो एक आध महीना लगता है , जिसमे आस पास के लोगों द्वारा उसकी वेशभूषा भाषा और खास शब्दों के चयन और उच्चारण पर टेढ़ी नज़र और टीका टिप्पणी , किसी को भी थोड़ी देर परेशान रखने मजबूर कर ही देती हैं , चंद्रपाल के साथ भी कुछ ऐसा ही था , इसके अलावा वो खाने को लेकर भी बहुत परेशान था जाहिर था की गाँव में उसकी माँ के हाथ का  पकाया ममतामयी खाना , उसे खुद खाना बनाना नही आता था , नई नौकरी पर आये लड़के को झाड़ू पोछा सीनियर साथियों की डांट फटकार , कुल मिला कर शुरुवाती दो तीन महीने काफ़ी कष्टदायक थे ।

दो तीन महीने बाद तब तक डैडी को वो बहुत पसंद आ गया था पहला कारण जैसे ऊपर लिखा ’जी’ का इस्तेमाल और उसकी हिन्दी भाषा , बोली की शालीनता भरी सुरमयी शैली  , एक दिन जाने किस वजह से उसका लिखा कोई कागज़ डैडी के पास पहुँचा , अत्यंत कलात्मक हस्त लेखन देख कर उन्हें बहुत अच्छा लगा , जाहिर हैं हस्तलेख कला को डैडी जी तक पहुँचने में कोई दो तीन महीने लगे । उन दिनों छोटे स्तर की नौकरी में कोई लम्बी चौड़ी आवेदन पत्र इत्यादी की औपचारिकता नही था किसी की वाकफियत की सिफ़ारिश ही बहुत थी ।

डैडी का दिनचर्या की शुरुआत,व्यापार से संबंद्ध पत्रचार जो विभिन्न सरकारी एवं डीलर सप्लायर से करनी होती थी अतः रोज़ सुबह स्टेनोग्राफर ताम्बी जी आते तो डैडी उन्हें english dictation देते तो वो चिठ्ठी टाइप करके उन्हें भेज देते थे , ताम्बी जी केरल राज्य के थे , कुछ दिनों से डैडी कुछ हिन्दी भाषित जगहों पर जैसे उत्तर प्रदेश , बिहार , मध्य प्रदेश में हिन्दी में चिट्ठी भेजने के पक्ष में थे , परन्तु हिंदी की टाइपराइटर और टाइपिस्ट का अनुपलब्धता , कुल मिला कर उनका हिन्दी में चिट्ठी भेजने की महत्वकांक्षी योजना सिरे नही चढ़ रही थी ।

एक दिन डैडी ने प्रयोग हेतु चंद्रपाल को सामने एक टेबल पर कागज़ कलम देकर बिठाया और कहा जो मैं कहुँ आप लिखों , धीरे धीरे एक पेज की चिट्ठी का मज़्मून बता कर देखा क्या लिखा हैं , एकदम साफ लेखनी थी , सिर्फ़ एक नियोजित पत्र के फॉरमेट जैसे डेट की जगह , सेवा में , कैसे ,  निवेदन की जगह , विषय कहाँ इत्यादि इत्यादी को ठीक करके अलग अलग करीब तीन पत्र लिखवाये , उन तीन पत्रों को फ़िर फॉरमेट की दृष्टि से ठीक करके वापस दिये  कहा दुबारा नये सिरे से लिखों , चंद्रपाल ने दुबारा लिखे , फ़िर थोड़ी थोड़ी गलती रह गयी , फ़िर तीसरी बार लिखी गयी तब लगभग ठीक को गयी , डैडी के फाइनल चैक की और ख़ुश हो गये , तुरंत कंपनी के लैटर-हैड हिन्दी में प्रिंट करने का आर्डर पास की कृष्णा प्रिंटर को कर दिया , तीन चार दिन के बाद हिन्दी के लेटर-हैड आ गये ।

अब बारी थी सादे कागज़ पर चैक हो चुकी पत्र को प्रिंटिंड हिन्दी लेटर हैड पर दुबारा लिखकर पोस्ट करना , चंद्रपाल ने फटाफट लिखे , डैडी ने चैक किये पाया एक भी गलती नही थी , हस्ताक्षर किये और भेज दी गयी , बहुत ही शाबाशी दी हीरामन जी को बुलाया तो उनसे पता चला की उसे तो ज़ुनून सवार हो चुका था जिन दो तीन दिनों में जो प्रिंटिंग हो रही थी, छुटी के बाद देर रात तक चंद्रपाल चिठी को लिख लिख कर अभ्यास करता रहा इसलिये कोई गलती नहीं हुई ।

उसके बाद तो मानो आचुल परिवर्तन आ गया ,
चंद्रपाल का अब काम था पहले सादे कागज़ पर फ़िर लैटर हैड पर पत्र लिखना था , सारे दिन में वो करीब दस चिठी लिख लेता था , उसके पुराने सब छोटे मोटे कामों से उसका कब पीछा छूट गया पता ही नही चला , डैडी को सही हुनर को पहचानने का पुराना तजुर्बा था , चंद्रपाल को कहा गया की शाम को हिन्दी का अखबार ले जा कर पढ़ो खास कर संपादक को पत्र , उसका असर साफ़ दिखाई देने लगा पत्र की लेखनी में , अब सादे कागज़ पर पहले लिखने की ज़रूरत ख़त्म हो गयी , सीधे लेटर हैड पर पत्र लिखना शुरू हो गया ।

अब तक उसकी नौकरी का साल होने को आ गया था ,
उसके मनपसंद चिठी लिखने का काम , मालिक से मिली प्रशंसा , बारह महीने की बारह तन्ख्वाह, और दिल्ली शहर की आब-ओ-हवा , अब पायजामे की जगह शर्ट पैंट , तेल से चिपड़े बाल की जगह साफ सुधरे कटे बाल , इत्यादि इत्यादि । चंद्रपाल के व्यकित्व में एक सुखद परिवर्तन आ चुका था ।

छः सात साल बाद की बात हैं , चंद्रपाल छुटी लेकर गाँव गया , एक दिन वापस आया तो पता चला की शादी करवा कर आया हैं , थोड़े दिन बाद किसी सरकारी दफ़्तर में मेरे साथ गया , वहाँ गर्मी में पसीने को पूँछने के लिये रूमाल निकाला तो मैंने देखा सफ़ेद रुमाल पर गुलाबी धागे से कढ़ाई से लिखा था ”सप्रेम चंद्रपाल” मेरी भीनी सी मुस्कुराहट देखकर चंद्रपाल झेप गया , मैने पूछा यह किसने लिखा तो शर्माते हुऐ बोला  ”मिसेज़ ने”  ( Mrs.), जाने क्यूँ  चंद्रपाल की झेंप शर्माहट को देखकर मेरी हँसी  छुंट गयी , तुरँत बोला मुझे बहुत ही प्यार करती हैं हमारी मिसेज़ , उसका मिसेज़ का उच्चारण बहुत ही प्रेम में पूरी तरह डूबा हुआ था , आज भी मैं सोचता हूँ तो जाने क्यूँ एक अजीब से प्रेम की तरंग दो प्रेमियों में महसूस कर सकता हूँ

....शेष कभी आगे कड़ी में
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”मिसेज़ ने" Story by Kapil Jain
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January 20th, 2019

Monday, January 14, 2019

कुछ और हिम्मत रख रोशनी यक़ीनन मिलेगी

Happy Lohri

कुछ और हिम्मत रख रोशनी यक़ीनन मिलेगी
पीछे गहरे अंधेरे पार हुऐ सिर्फ़ अपने हौसलों से
                                       ......कपिल जैन

Ladakh, J & K, INDIA
Photograph by Kapil Jain with Kamini Jain
August, 2014

Sunday, January 13, 2019

wo ham-safar tha magar us se ham-nawai na thi " By Naseer Turabi.

Kapil Jain's Understanding of the Ghazal " wo ham-safar tha magar us se ham-nawai na thi " By Naseer Turabi.

Preface :  As a student of Urdu Poetry, Come across a very unique style of writing & subject, which is strange enough, though properly understood but still to imbibe in its completeness.
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वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी

मोहब्बतों का सफ़र इस तरह भी गुज़रा था
शिकस्ता-दिल थे मुसाफ़िर शिकस्ता-पाई न थी

कभी ये हाल कि दोनों में यक-दिली थी बहुत
कभी ये मरहला जैसे कि आश्नाई न थी

न अपना रंज न औरों का दुख न तेरा मलाल
शब-ए-फ़िराक़ कभी हम ने यूँ गँवाई न थी

अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी

बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी

अजीब होती है राह-ए-सुख़न भी देख 'नसीर'
वहाँ भी आ गए आख़िर, जहाँ रसाई न थी

                                ........... नसीर तुराबी
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वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी

हम-नवाई : like mindedness

Companion (beloved) was a like a Co-Passanger, the relationship has good and fair times but hardly any like-mindedness between us.
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मोहब्बतों का सफ़र इस तरह भी गुज़रा था
शिकस्ता-दिल थे मुसाफ़िर शिकस्ता-पाई न थी

शिकस्ता-दिल : broken hearted, distressed

शिकस्ता-पाई : broken feet

Love wrapped journey went like broken hearted traveller moving together but still has not willing to stop as feets were having the courage to move forward.
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कभी ये हाल कि दोनों में यक-दिली थी बहुत
कभी ये मरहला जैसे कि आश्नाई न थी

यक-दिली : unanimity,concord
मरहला : a stage, an inn, a difficulty
आश्नाई : friendship, love, दोस्ती, संबंध

At times there was a concord in union, then there was a stage where hardly any existence of love remains.

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न अपना रंज न औरों का दुख न तेरा मलाल
शब-ए-फ़िराक़ कभी हम ने यूँ गँवाई न थी

रंज : grief, sorrow, दुख
दुख : suffering, distress
मलाल : regret, grief, sorrow
शब-ए-फ़िराक़ : the night of separation
गँवाई : lose, throw away, waste

Neither any grief No suffering Nor any regret, though we were together but as good as separated, both had the patience to be in themselves but certainly not together.
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अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी

अदावतें : enmity, animosity (plural)
तग़ाफ़ुल : neglect
रंजिशें : unpleasantness, affliction
बेवफ़ाई : faithlessness, treachery

The relationship has animosity, neglect, unpleasantness even though at the time of separation faithful to each other.
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बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी

At the time of separation, beloved's eyes were having the inspiration for my next poem, which is still to come in existence.
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अजीब होती है राह-ए-सुख़न भी देख 'नसीर'
वहाँ भी आ गए आख़िर, जहाँ रसाई न थी

अजीब : strange, astonishing
राह-ए-सुख़न : way of poetry / art.
'नसीर' : the Poet नसीर तुराबी
रसाई : access, reach, skill, approach

The astonishing part of any creative art ( here refers as poetry ) is that an inspirational can come even from the strangest experiences or unthinkable sudden moments, where generally one cannot even think to reach.

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Kapil Jain
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Noida, Uttar Pradesh, 201313
January 14th, 2018

Tuesday, January 8, 2019

कोई अज़्म नहीं एक ग़रज़ हैं घर के वजूद की


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कोई अज़्म नहीं एक ग़रज़ हैं घर के वजूद की
कोई शौकिया यह करतब अपने लिये क्यूँ करे ?
                                          ...कपिल जैन

Workers lying wires on
Hi-Tension Electrical Towers
Okhla Industrial Area, New Delhi
January 2016

Photograph by Kapil Jain

अज़्म : conviction, determination, intention
ग़रज़ : intention, object, purpose, end
वजूद : existence, being, life