Friday, March 15, 2019

चाँदी का वर्क : story by Kapil Jain

Happy Birthday Daddy
My Daddy Late Shri Karam Vir Jain
Born  : March 15th, 1927
Eternity : July 29th, 1990

Daddy's Birthday memoirs

चाँदी का वर्क : story by Kapil Jain

तब मेरी उम्र कोई नौ - दस वर्ष की रही होगी , अनंत चतुर्दशी के पावन महोत्सव के उपलक्ष्य हेतु निकलने वाले भगवान महावीर की शुशोभित सवारी की रथयात्रा दिखाने हमे डैडी हर साल जैन लाल मंदिर जी जो दिल्ली में लाल किले के सामने हैं लेकर जाते थे , वहाँ दर्शन के साथ साथ चाट पकौड़ी ,भल्ला पापड़ी जाने क्या क्या मज़े करते थे ।

चाँदनी चौक से निकल कर दरीबा कलाँ से चावड़ी बाजार होते हुऐ यह सवारी फ़िर लाल मंदिर पर वापस समाप्त होती थी , बहुत भीड़ होती थी पूरे रास्ते में , भक्त जन, इंद्र रूप में , नृत्य, संगीत ,फूलों की वर्षा , मंगल आरती करते हुऐ सवारी को आगे लेकर चलते थे , बहुत रमणीक दृश्य होता था ।

जब सवारी चावड़ी बाज़ार की तऱफ पहुँची तो सड़क थोड़ी सँकरी हो जाने की वजह से उपजी भीड़ से बचने के लिये , डैडी ने हमें एक गली से होकर सवारी से आगे अगले चौराहे पर पहुचाने का निर्णय लिया , वजह थी भीड़ से भरी सड़क पर छोटे बच्चों के साथ दिक्कत हो सकती थी ।

डैडी ने दोनों हाथों से मुझे और मेरी दीदी को पकड़ा , मम्मी भी पीछे आ रही थी , गली में हमारे जैसे कई लोग अगले चौराहे तक पहले पहुँचने के लिये आतुर थे इसलिये वहाँ भी काफ़ी हलचल थी ।

चूड़ीवालन नामक इस गली ने जैसे ही मोड़ लिया , एक आवाज़ ” कटाप्पा  कटाप्पा कटाप्पा कटाप्पा कटाप्पा ” जैसे कोई दिल और दिमाग दोनो पर एक साथ हथौड़ी से चोट कर रहा हो और वो भी एक मिनट में कोई सौ बार , अपने कान को तुरँत बंद करने को विवश मैने दूसरे हाथ की उंगली से कान बंद करते हुऐ , डैडी के पकड़े हाथ को ज़ोर से खिंचते हुऐ पूछा डैडी से कैसे आवाज़ हैं ?

डैडी इस इलाके के चप्पे चप्पे से वाकिफ़ थे , बोले बहुत अच्छा हुआ की बाय-चाँस हम आज इस तरह से निकले , तुम्हें बहुत ही नायाब कारीगरी दिखाता हूँ , और क्यों जैन धर्म में चाँदी के वर्क लगी मिठाई इत्यादि नही खानी चाहिये।

एक दुकान की तरफ़ बढ़ते हुऐ पाया की आवाज़ बहुत बेचैन कर देने की कैफ़ियत रखती थी , मैने कहा डैडी नहीं जाना उन्होंने जवाब दिया, क्यूँ नही , यह दुबारा नही देख पाओगे , चार कदम चलते ही एक जीना ऊपर की मंज़िल की तऱफ चढ़ रहा था ।

ऊपर पहुँचे तो देखा तीन कतारों में करीब बीस कारीगर बैठे हुऐ, लकड़ी की एक छोटी सी डंडी से एक आधी ईट नुमा जो चमड़े से लिपटी थी को लगातार पीट रहे थे , एक साथ बीसियों चोट वो भी इतनी तेज़ गति से लगभग एक सेकंड में दो बार , मिसाल के लिये चार पाँच ढ़ोल से उपजी आवाज़ जो लयबद्धता लिये हो , चार पाँच मिनेट ही हुऐ होंगे , एक साथ सारे कारीगर रुकें फ़िर चमड़े की परत हटाई तो पाया अंदर पीले चिकने कागज की नोटों जैसी गड्डी की प्रत्येक परत के बीच में चाँदी की एक महीन परत जिसे चाँदी का वर्क भी कहते हैं बना मिला , उस गड्डी को साइड रख कर , एक नई पीले चिकने कागज़ की गड्डी में प्रत्येक परत के बीच में चाँदी की एक एक टिकिया रख कर , एक साथ फ़िर पीटना शुरू किया । वहाँ तो कोई बात सुनाई नही दे सकती थी ।

नीचे आने के बाद डैडी ने बताया की एक साथ एक बैंड की तरह पीटने से ही आवाज़ सूरमयी हो जाती हैं परंतु आवाज़ की तीव्रता की वज़ह से नये सुनने वाले को असहनीय लगती हैं , इन बेचारे कारीगरों को तो इसके अलावा कोई चारा नही हैं , मान लो अगर यह अलग अलग समय में पीटेंगे तो आवाज़ इतनी असहनीय हो जायेगी जिसका कोई अंदाज़ लगाना भी मुश्किल हैं , और बताया इसके बिलकुल विपरीत , जब कोई फ़ौज़ी दस्ता किसी पुल पर से गुज़रता हैं तो कमान्डर दस्ते की कदम ताल तो ब्रेकअप कर देते हैं , अगर कदमताल एक जैसी तो resonance से पुल तक टूटने का ख़तरा हो सकता हैं , ऐसी हैं आवाज़ की ताक़त ।

वर्क बनाने में चमड़े के इतेमाल की वजह से जैन अनुयायी वर्क खाना नहीं पसंद करते हैं । अब जब चाँदी का वर्क अत्याधुनिक मशीन पर बनने लगा हैं और उस चाँदी की गुणवत्ता भी विश्वसनीय हैं इसलिये ही वस्तुस्थिति बदल गयी ।

आज भी जब में उस आवाज़ को याद करता हूँ तो सिर्फ़ एक शब्द से उसकी व्याख्या हो सकती हैं वो हैं ”वहशत”

एक पिता अपने बच्चे को कोई महीन ज्ञान किस तरकीब से दे सकता हैं , यह बात आज करीब चालीस साल बाद फ़िर याद आयी ।

चाँदी का वर्क : story by Kapil Jain
All rights reserved
kapilrishabh@gmail.com
Noida , U.P., India
March 15th , 2019


No comments:

Post a Comment