Wednesday, July 18, 2018

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ




अभी इस तरफ़ न निगाह कर
मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ
मेरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना
तुझे आइने में उतार लूँ
....डॉ. बशीर बद्र

मेरी जान , अभी मेरी तरफ़ ना देख क्योंकि मैने तेरे रूप को शब्दों में ढाल कर गज़ल लिख ली है, अब सिर्फ़ शब्दों को कुछ और सँवार लूँ , जैसे तेरी खूबसूरत आँखों में पलकों की साज़-सँवार ,
इस लम्हे में अगर तुम मुझे देखोगी तो मेरा ध्यान गज़ल से हट के तुम्हारी ख़ूबरूरती मे लीन हो जायेगा ,
मेरा मक़सद है जब पाठक यह ग़ज़ल पढ़े तो उसे शब्द दर शब्द तस्वीर बनती दिखाई देनी चाहिये , ( जाहिर है , उस महबूबा की जो पाठक के दिल में बसती है )

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